31.10.08

चिट्ठियां

चिट्ठियां आतीं थीं
रोज
जिन्हें सहेजता था
तकिये के नीचे
और बार-बार पढ़ता था
जवाब के साथ
चिट्ठियों के साथ
मैं था
और
मेरा अस्तित्व,
मेरी भावनाएं
आज भी
मेरे साथ हैं
सिर्फ चिट्ठियां
  • मंतोष सिंह

1 Comment:

संगीता पुरी said...

सिर्फ चिटिठयां ?
बहुत अच्‍छा।