चिट्ठियां आतीं थीं
रोज
जिन्हें सहेजता था
तकिये के नीचे
और बार-बार पढ़ता था
जवाब के साथ
चिट्ठियों के साथ
मैं था
और
मेरा अस्तित्व,
मेरी भावनाएं
आज भी
मेरे साथ हैं
सिर्फ चिट्ठियां
रोज
जिन्हें सहेजता था
तकिये के नीचे
और बार-बार पढ़ता था
जवाब के साथ
चिट्ठियों के साथ
मैं था
और
मेरा अस्तित्व,
मेरी भावनाएं
आज भी
मेरे साथ हैं
सिर्फ चिट्ठियां
- मंतोष सिंह
1 Comment:
सिर्फ चिटिठयां ?
बहुत अच्छा।
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