18.10.08

जनता अपना के ना जाने

  • जयन्ती पाण्डेय
एक दिन बाबा लस्टमानंद से रामचेला पूछले कि हो भाई, ई जनता का कहाला? साँचो बड़ा टेढ़ सवाल रहे. हार मान जाय त लस्टमानंद कइसे? थोड़की देर विचार के कहले कि जनता ओकरा के कहल जाला जेकरा वोट देहला से सरकार बनेले, विधायक आ सांसद होला लोग, प्रधानमंत्री आ मुख्यमंत्री चुनाला लोग. संक्षेप में कि ग्राम प्रधान से देस प्रधान ले के चुनाव जेकरा अंगुरी के इसारा से होला उहे जनता हऽ. कबहुं कबहुं मंच पर बइठल लोग भ्रम से जनता के जनार्दन कहि देला. अइसनका गलती कइ बेर हो जाला. लेकिन जनता के काम खाली वोट दिहल हऽ. एह धरा धाम पर ओकर जनम खाली एही खातिर होला. जइसे गंगा के ई धराधाम पर अवतरण पापी लोग के पाप धोवे खातिर भईल आ पापी लोगन के पाप धोवत धोवत ऊ खुदे गंदा हो गइल ओसहीं जनता नाम के ई जीवधारी प्राणी वोट देत देत निराश हो गइल बा. जनता अबहुंओ ओसहीँ बा जइसे सन सैंतालिस के पहिले रहे. ना जाने ई साठ बरिस कईसे पांख लगा के उड़ गइल. लोग कहेला कि ई तरक्की बा, ऊ तरक्की भईल बा, लेकिन जनता के हाल कहाँ सुधरल बा? वोट देहला के बाद जनता अपना काम में लाग जाले. रोटी कपड़ा आ मकान से छुट्टी मिलल त बाल बच्चा के पढ़ाई लिखाई आ ओह से संवास मिलल त दवा आ सबसे छूटल त दारू! ई सब से बेचारा के फुरसत कब मिलेला. जनता के लगे जे वोट मांगे जाला ओकरा लगे का ना होला, जईसे झूठ वादा, आश्वासन, फरेब, लठैत, गुण्डा, जाति, धर्म, विकास के सपना, अगिला पांच बरिस में चौबीसो घण्टा बिजली सब कुछ. कहीं त जनता फँसी.
जब चुनाव हो जाला तब जनता के हाथे चुनल प्रतिनिधि लोग से जनता के संवाद आ विवाद के चांस कमे मिलेला. संवाद से प्रतिनिधि बांचेला आ विवाद से जनता. संवाद आ विवाद से बांचे के एगो आऊर कारण होला कि जनता राजधानी में ना फटक सके आ प्रतिनिधिगण चुनाव क्षेत्र में ना आवेला लोग. नेता लोग के लगे वइसे राजधानी में बहुत काम होला, सरकार बनावे से गिरावे तक ले. क्रिकेट से जियादा दिलचस्प गेम हर साल राजधानी में होला. एकरा से अलहदा कुछ अइसनो होला जे चाह के भी चुनाव क्षेत्र में ना जुटावल जा सके ई सब आकर्षण से मुक्त भइल असंभव नइखे त कठिन त बहुत बा. एह में नेता लोग के का दोष बा? हम त एह में उहन लोगन के दोष नाम मान सकिले. अरे जिनगी के जीये के सबके अलग अलग तरीका हऽ. जले भाग में बा तले मजा ले लेवे में का दिक्कत बा? एतना के बावजूद नेता लोग साल में एक दू बार त चुनाव क्षेत्र में आव के दया जरूर कऽ देला लोग. कवनो बिपत परल, बाढ़ आइल, उद्घाटन शिलान्यास भईल त जाहीं के परेला. जाये के पहिला सूचना मीडिया के मिलेला, दोसरका सरकारी सूचना अधिकारी लोग के आ अन्तम सूचन पूज्य चमचन के. जनता के केहू ना पूछे. ई चमचा तय करेला लोग कि नेताजी कवना पुल के उद्घअटन भा कवना स्कूल के नेंव डलिहें आ उहाँ से कहाँ अइहें जहाँ जनता नामक जीवधारी के जमात जुटावल जाई आ संगे जुटावल जाई तीन गो मकार, मंच, माईक आ माला. ओकरा बाद भाषण, आश्वासन.
जब नेता बड़हन हो जाला, यानि कि जनता खातिर दुर्लभ हो जाला त नेता जी अपना भाई भा बेटा के चुनाव क्षेत्र में भेज देला। बड़ गाड़ी में आकर्षक चमचन के बीच ऊ दू दिन में पूरे चुनाव क्षेत्र के दौरा कऽ के राजधानी लौट जाला. जनता के कहीं कवनो भूमिका ना रहेला. जनता आपन मुंह सीसा में निहारऽत रहेला कि ऊ असल में का हऽ आ का उजे ई नेताजी के चुनले रहे?

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