- जयन्ती पाण्डेय
जब चुनाव हो जाला तब जनता के हाथे चुनल प्रतिनिधि लोग से जनता के संवाद आ विवाद के चांस कमे मिलेला. संवाद से प्रतिनिधि बांचेला आ विवाद से जनता. संवाद आ विवाद से बांचे के एगो आऊर कारण होला कि जनता राजधानी में ना फटक सके आ प्रतिनिधिगण चुनाव क्षेत्र में ना आवेला लोग. नेता लोग के लगे वइसे राजधानी में बहुत काम होला, सरकार बनावे से गिरावे तक ले. क्रिकेट से जियादा दिलचस्प गेम हर साल राजधानी में होला. एकरा से अलहदा कुछ अइसनो होला जे चाह के भी चुनाव क्षेत्र में ना जुटावल जा सके ई सब आकर्षण से मुक्त भइल असंभव नइखे त कठिन त बहुत बा. एह में नेता लोग के का दोष बा? हम त एह में उहन लोगन के दोष नाम मान सकिले. अरे जिनगी के जीये के सबके अलग अलग तरीका हऽ. जले भाग में बा तले मजा ले लेवे में का दिक्कत बा? एतना के बावजूद नेता लोग साल में एक दू बार त चुनाव क्षेत्र में आव के दया जरूर कऽ देला लोग. कवनो बिपत परल, बाढ़ आइल, उद्घाटन शिलान्यास भईल त जाहीं के परेला. जाये के पहिला सूचना मीडिया के मिलेला, दोसरका सरकारी सूचना अधिकारी लोग के आ अन्तम सूचन पूज्य चमचन के. जनता के केहू ना पूछे. ई चमचा तय करेला लोग कि नेताजी कवना पुल के उद्घअटन भा कवना स्कूल के नेंव डलिहें आ उहाँ से कहाँ अइहें जहाँ जनता नामक जीवधारी के जमात जुटावल जाई आ संगे जुटावल जाई तीन गो मकार, मंच, माईक आ माला. ओकरा बाद भाषण, आश्वासन.
जब नेता बड़हन हो जाला, यानि कि जनता खातिर दुर्लभ हो जाला त नेता जी अपना भाई भा बेटा के चुनाव क्षेत्र में भेज देला। बड़ गाड़ी में आकर्षक चमचन के बीच ऊ दू दिन में पूरे चुनाव क्षेत्र के दौरा कऽ के राजधानी लौट जाला. जनता के कहीं कवनो भूमिका ना रहेला. जनता आपन मुंह सीसा में निहारऽत रहेला कि ऊ असल में का हऽ आ का उजे ई नेताजी के चुनले रहे?
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