भोजपुरी फिल्मों में बालीवुड की चर्चित फिल्मों के नाम और उनकी विषय वस्तु की नकल का बढ़ता प्रचलन फिल्म निर्माताओं और दर्शक दोनों को ही रास नहीं आ रहा। इसका सबसे कारण है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के बाहर के फिल्म निर्माता हिंदी की चर्चित फिल्मों के नाम व उसकी विषय वस्तु की नकल कर इन फिल्मों को फिर से भोजपुरी में पेश कर देते हैं। फिल्म निर्माता महसूस करते हैं कि स्टार चुनने की प्रणाली भी इसके लिए दोषी है। भोजपुरी फिल्मों में पहले सितारों का चयन होता है और उसके बाद कहानी लिखी जाती है।
फिल्म निर्माता अभय सिन्हा की हालिया प्रदर्शित 'बाहुबली' के साथ दो हिंदी फिल्में 'किडनैप' और 'द्रोण' भी प्रदर्शित हुईं। सिन्हा का दावा है कि उनकी फिल्म ने उत्तर प्रदेश और बिहार में बालीवुड की इन दोनों फिल्मों से बेहतर प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि देश भर में फैले भोजपुरी सिनेमा के दर्शक उन्हीं फिल्मों को पसंद करते हैं जो बिहार और उत्तर प्रदेश की ग्रामीण परंपरा से जुड़ी होती हैं। उन्होंने कहा कि भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता और हिंदी फिल्मों की नकल परोसने की कोशिशें फ्लाप साबित हुई।
एक अन्य फिल्म निर्माता सुनील बुबना भी महसूस करते हैं कि भोजपुरी फिल्म बनाने वाले अपने लक्ष्य से भटक रहे हैं। उन्होंने कहा कि भोजपुरी सिनेमा के दर्शक ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो जमीन से जुड़ी महसूस हों। उनका कहना है कि फिल्म की लागत वसूलने के लिए जरूरी है कि भोजपुरी फिल्म सिनेमा हाल में कम से कम तीन से चार सप्ताह तक चले।
भोजपुरी फिल्मों के दर्शकों के लिए निरहुआ की फिल्म 'दीवाना' के अलावा 'भोजपुरिया डान' और मनोज तिवारी की 'हम हई खलनायक' जल्द प्रदर्शन के लिए तैयार हैं।
19.10.08
अपने मूल से भटक रहीं भोजपुरी फिल्में
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