6.10.08

वारिस खातिर लइका चाहीं

  • अभय त्रिपाठी
वारिस खातिर लइका चाहीं मचल बा हाहाकार।
कोखी से ही लइकी साथे हो रहल बा भेदाचार।
हो रहल बा भेदाचार कि सुन लीं लइकन के करनी।
एगुड़े कोठरी में पेटवा काट के चार चार के पलनी।
कहे अभय कविराय कि अब आईल बा जमाना।
चार चार कोठरी के किला में भी ना माँ बाप के ठिकाना।
बोई ब पेड़ बबूल के त आम कान्हा से पई ब।
मार के लइकी के तू लइका कहाँ ले जई ब।
अंजोरिया से साभार

2 Comments:

Udan Tashtari said...

बोई ब पेड़ बबूल के त आम कान्हा से पई ब।
मार के लइकी के तू लइका कहाँ ले जई ब।


--क्या बात है!

वाह! बहुत सुन्दर.

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाकई
सार्थक सोच
लड़कियों के बगैर लड़के
इसकी कल्पना भी भय पैदा करती है
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